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Full text of "MusicResearchLibrary-Source Texts"

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॥ श्रीः॥ 


गन्दपूरौ, 
त भदोद्र-३९० ०९ १, 
कल्यगक्विरचित 


सुगमरागमाटा । 


----“^८*©*0"---- 


यहत्रेथ 


भाठचंदशमनि 





आर्थमूपण यत्रालयमें छपवाकर प्रसिद्ध किया हे. 





दाक्ः १८२० 


<€ > सन्‌ ९९६८ 
















( सव आधेक्नार स्वाधीन दै, ) 


॥ श्रीः॥ 


` भुगमरागमाला, 


नक 
श्रीनलदाष्य नमः 
अथ पर्जादिसपस्यरसंच्या प्रथममंउलं छिल्यते । 
दादा. 

पज रिषभ गंधार पुनि मध्यम पचम जान । 
धैवत बदरि निषाद स्वर सानो कटे वपान ॥ १॥ 
खर्‌ दंजर हय कोकिला काक केकि अर भेक । 
इनके स्वरे अशते भकट भये इक एकं ॥ २ ॥ 
सारिगमपथनिस्दरनकी मायौ नदी सरूप । 
साधन मुखे तेत्रन सपरा नाच दि नाच अनूप ॥ ३॥ 
कोपभेद्‌ गमि अलग ओ टाम डट भिर्‌ मान | () 
उपे तुपै गुर सुं रषु करल संगीत वपान ॥ ४ ॥ 
इत्यादिक स्वर भेद्‌ दै गःवत सुघर विचार । 
ए सै गति आलाप रति चतुर खर नारी ॥ ५॥ 

अय आच्प विधी । 
तनरी ईनाता नरौ ईननञ आ नाम । 
बाटृस स्वरति सुन ठे अवगुनहं तीन विधी ग्राम ॥ ६ ॥ 

इति प्रथममंडटखंडः। 










सूचना. 

ह्या प्रंथाची हर्तटिखिन भरत शीकाशीसंगीतसमानाचे ` 

| आऽ सेकरेटरी श्री० जगन्नाथवर्मा याजकटन आन्दं् मिरी. 
‡ व्यावदृल अन्द त्ववि फार आमागी य. 


प्रकारक. 


पव ५१ 6७८ 4.15०.111 
छ 4प्णणत एण 





[1 
त धापा, 






५; 
रप्प्त्‌ ए एत ४पदर५ इ 
क 111 


(क 





प], कण्ण 





अथ श्रुतिविधानद्वर्तीयसंडः । 
चारि स्वरति खज॑की तीन रिपभकी आही 1 
द गेधारकी चारी मध्यम स्वके मारी ॥ ७ ॥ 


खर रार 





९. 


चारि बहुरि पंचम वे धैव्र तीन बपान । 
दर निषादं बसत वाईसोई जान ॥ ८ ॥ 
अथ षजादि सपस्वरस्य द्वाविंशति स्वरातिनाम वर्णनं 1 

दीताईता गृद्ध ओ मध्या नाम हि नान । 
चारि स्वरति ए पर्जके के कट्यान वखान ॥ ९ ॥ 
बीना ओर नदीन पुनि कटि वानि भीन । 
नाद्‌ सप्तसति कामते रिषम्‌ स्वरदि ए तीन ।। १० | 
एसी यनी द्वितीय पुनी नाम मोहिनी आटि । 
दो स्वरति गंधारकी जानत कोविद्‌ ताहि॥ ११॥ 
नापर कोमटा कोकिला शुदा मंगल रूप । 
मध्यम्‌ स्वरति चारि ए उपजी परम अनूप ॥ १२ ॥ 
अगा बष्ुरि तरंग पनि सुनो सुसंया नाम । 
ओर िभेगा चौथी ह पैचम स्वरति ललाम ॥ १३ ॥ 
युत्ता इक टपर द्वितिय तरातिय भक्षिक्ष संग । 
भवेत श्रुति भत वरणिन कहत वदत सुरंग ॥ १४ ॥ 
भगी बहुरि अमी ह सरति निषाद्की दोय । 
वाईसो ए जानि गति गुनी ज शेय ॥ १५॥ 

इति बा्सस्वरशरुतिनाम द्वितीयसवंडः । 


अथ प्रामनाम. 
उदरा दिक शद्रा बहुरि तारातीजा नाम । 
बरनत हौ आगे सुनो यकयकहको विश्राम ॥ १६॥ 
अद्रा उपज उद्र शद्रा कंठ स्थान । 
तास होय कप्रारते बरनत नाद्‌ पुरान ॥ १७॥ 
एति वृतीयघ्रामनामव्णन तृतीयसरडः । 





४ 


अथ एक्िशान्ृछना स्थान नाम । ` ~= 
छना तेह बसत ह जह सवरको पिधा । 
तीन तीन खर परति रह अवर बरन सव्र नाम ॥ १८ ॥ 
अथ पूजादि सस्वर मूछना नाम कथनं । 
आमोदनी बिनाद्नी ओ मपोदनी नाम । 
पञ मूना तीन. ए उपनत स्र विश्राम ॥ १९ ॥ 
दीषौ यक रीरा दुतिय व्वंगी तुतिय बखान । 
कृत सूना रिषभकी च समाने जानि ॥ २० ॥ 
हे आनि भरलापि पुनि आलापी सुखधाम । 
उपजत है गैधारते तीन मरना नाम ॥ २१ ॥ 
विश्रामिनी अरु कामिनी आरापिनी अनष । 
मध्यमते प्रगट सदा तीन मूर्छना नाम ॥ २२ ॥ 
ओर कोमलीनिमंली जनी नाम लाम । 
प॑चमकी ए मूखेना निर्या परम सुवाम ॥ २३ ॥ 
आधारिनी विदहारिनी विस्तारिनी विचारी । 
धैव स्वरी सूखेन वहतं मचारि मचारि ॥ २४॥ 
लजना संकोची वहुरि गोपी कटी वषानी । 
रसिक कल्याण पुराण तत सवर निषादकी जानि ॥ २५ ॥ 


दति चतुर्थ॑लंडः। 






अथ दशदोषाविभागकथनं । 
तानदीन रसहीन अरु ताखदीन स्वर काग । 
वद्न भह वांकी किये गाव द्रुतगति त्याग ॥ २६ ॥ 


पुनि कपाठस्वर व्यंगस्वर अर्थ न जात जोई। 
अर स्वर मेद न लस सुनी तासो अय दुख होई ॥ २७ ॥ 








४ 


ए दृश दोष विचारिव वरणे सदत विभाग । 
सर्वश गुण अय कौ सुनी बार अनुराग ॥ २८ ॥ 
इति पंचमखंडः । 
अथ रागस्य सप्तविशगुणविभागकथनं ॥ 

भद्धा ओ अभिटाप पनि सुमाति रूप रस ज्ञान । 

दवा मंत्रि जपम ुख नेष चाद परमान |} २९ ॥ 

नीति विनीत भरतीत पनि बुद्धि द्रवत विवेक ॥ । 

निव भक्ति संयोग पुनि प्रिय भोग अनेक ॥ ३० ॥ 

यद्ध बुद्धि शरोता रसिक सुन विचारि सहेत । 

मन भरसन्न आनंदयुत एते गुणानि समत ॥ ३१ ॥ 
शति षष्ठखंडः। 





अथ रार्गधोतालक्षणं । 
राग्रोता तीन उत्तम मध्यम नीच । 
ते बरन वह्ुमाति दै रगग्रधके बीच ॥ ३२ ॥ 
अथ उत्तमरागश्चातालक्षणं । 


सभामध्य भरु वैषि उचित स्र वैरि । 

पान सुगेध सम उचित दित-सनमान सुधार ॥ ३३ ॥ 
निज समान जन सूखलिये वोट वचन विनैव । 

इष्ट पित्रो सूचना करे खुसी यकः एक ॥ ३४॥ 
धडी चार द्रं विके ददै मसज सुनि राग । 

क्ट गुनी भसन्न करी बहुत,न वैठे छाग ॥ ३५ ॥ 
निजसमान निन धान धारे काहु मिप जाय । 
रागरंग दवै सरस मै आवत हौ भाय ॥ ३६ ॥ 


उठत करै सुनिश्‌ सतै सदेव सरसुजान । 

खै सव सभा प्रसन्न तव सुने खग सुख मान ॥ २३७ ॥ 

राग होय परिपू जव तव गुणिको फेरि । 

जो करार सो देय अर क ईनाम पुनि देहि ॥ ३८ ॥ 
अथ मध्यमश्रोता लक्षणकथनं । 

सभा सहित वरे सुने सहित विल्यस विवेक ॥ 

दान मान सुख करि गुनी विद्रे यक एक ॥ ९ ॥ 
अथ नीचशरोता लक्षणक्थनं । 

गुनी राग सुनि गाय हि सभा मध्य न विचार । 

हसै कोड कोड दरे को देष निकार ॥ ४०॥ 
अथ तिविधगुनी लक्षणकथनं । 

गायक तीन भकार उत्तम मध्यम्‌ नीच । 

अपर दोप गुन रदित युनियन इनके बीच ॥ ४१॥ 

उत्तम सवव्रिधि पूणं रै मध्यम्‌ कद विधि दीन । 

कडु जाने वदु नानो नीच कदे ए तीन ॥ ४२॥ 

इति सप्मखडः। 





अथ गृणीश्रोता लक्षणं । 

रसिकः श्रोता तीन दै तगुण अंग आधिकार । 
जथा भाग गुनके सद्‌ा सुनत विचारी विसार ॥ ४२ ॥ 
सालिकः राजस तामसी जो उपचं संचार । 
ते ्रेरामि रसिक अर विषरं त्रिध प्रकार ॥ ४४ ॥ 

अथ गुणनिरतश्रोता लक्षणं । 

श्रथम सत्वयुण । 

सव अक्तर व्यापक रुत स्यामा उ्याम विरास । 
दावन रीरा सदा सुनि गावै सङ्कलास ॥ ४५॥ 





1 


#1 
तितीय रजागुण । 
रस राजा ब्रन राजसे जगल भावे प्रागय | 
गावै सुने समम नित इए उपास्य सुभाय ॥ ४९॥ 
चृतीय तमोगुण । 
उदृरभरनकारन सुगति भक्तिं विरक्त स्वरूप । 


करे गाय सुनि गुणनयो पथु विन्व॑भर रूप्‌ ॥ ४७ ॥ 


अथ जिगुणैराग्यश्रोता लक्षणं । 

प्रथम सत्वगुण । 

काम जोध मो्ठारि तजि भभ निरंनन देव । 

अद्रैतं भाव गाप सुम सत्व विरामी मेव ॥ ४८ ॥ 
अथ राजस । 

राजनीति पाटन केरे मन उदास गृमादि । 

वैकुटनावक गुण गणौ सुने आर फट नादि ॥ ॥ ॥ 
अध तामरस । 

गौप्य रहस्य रेदं परगट वहिरंमिन जो दोय । 

गाव सुने कटै सदा रसिक तामसी सोय ॥ ५० ॥ 

अथ चिगुणनिरत विषयद्श्राता लक्षणं । 
वाडा पूरण देत जो कटं पुनं दरिनाम । 


सो सालिक चिपटं भने जन नो प्रधटि सकाम ॥ ५१॥ 


धनमद जनयद्‌ रूपमद बजोदनमद माति । 
लोक तिष्ठा हिति सुने गावि दिन ओ राति ॥ ५२ ॥ 
विषय भोगने ते क हरिद्त साक्षी देदि। 


निजकर्मनियै सो गुन ग्रै पुनि सुनि टेदि ॥ ५३ ॥ 


अथ त्रिविधरागजातिवर्णनं । 
तिघरा त्रिधा परति गुणनके श्रोत्र षष म्॑नारि । 


के वरान नव भाति अब्र कटौ राग विस्तारि ॥ ५९ ॥ 


य स्न शवा 





# । 
आदि । 
भातिको भेद रै गागजाति 
त ृत्तिम पराकरत आदि ॥ ५५ ॥ 
संकीरण छेद । 
स परै मनदेद्‌ ॥ ५६॥ 


य॒द्प जो मेद्‌ निदि जानन 
दविषिषि चद ्रैषिषि बहूरि साका जान 1 । 
दविदिधि भाव संीरणद्‌ अगरसो कहीं बखान 
अथं द्विविध शुद्धानि भदुवर्णनं । 
कक शुद्ध दूजा तथा पहाज्ुद्ध स्वर जाति त | 
नाको भेद करौ बरणि ६ दा जिहिजा 
अथ प्रथमशुद्धनाति लक्षण । 
अतिरूप आ सा नह विषय संम नि दई 


५९ ॥ 
कनक स्वर विकरति हि पिह दयु जाहि सोर ॥ 
वरिक्ति कदत द तां नो ओर गर्सो दई । ॥ 
नालकिः अस्थान मिलि मिलि जाई ॥ &° 


भेद । 
= स्वर साङकते युपर प्रगर क 
न विचा स्वरतिमिल विच्छद ॥ ६१। 
गा 
# आदि ई रोड छद्‌ श । 
स सुम उपने भाव ॥ ६२ ॥ 


च न निति सर युर ली ६३॥ 
निमि सारंग अर कान्द पटाद गुण स देति) 
दि सराग शुद्ध मदाशुदध 
अथ कान्दगार्‌ यादि। 


चारिष्‌ 
सदी मै गुजरी ओ कान्द काटि ॥ ६४ ॥ 


पक दौ शुद्ध दै तीन । 
1 मावत गुनी भवीन ॥ ६५ ॥ 


तकता य ताः = 
















नि 1 क 


1 


विः २ 
विनसंकीरण्‌ | 
अथ द्विविधकारण लक्षणं । 

टपुसंकीरण परक नेगण्‌ पक | 
ताहि वृह सावन गुर गुनि समेत विक | ७५ ॥ 


अथ ्छषुनैकीरण लक्षण 1 


अथ द्विविध साटंक लक्षणं । 
सालकटु रै भाति दै बरनत ताहि निःश॑क । 
स्वरसारुक पथम दुतिय राग सालक ॥ ६६ ॥ 
स्वरसाटंकाहि शुद्ध मै गनत स॒याने लोग ॥ 





जामे परगट मिं सदा विति स्वरे संयोग ॥ ६७ ॥ मादि ग्द सो लघ संकीरण आदि । 
ध > जो मिली भेरी य कटाह | 
अथ गगमाटंक लक्षणं | जौ मिल रेडी म कृद्‌ ।। ७८ । 


~ ५ 


आओररंग छया मिं जर दोर ह आन । 

ताद रागस्तालंकं कदि वरत नाद्‌ सुरान ॥। ६८ ॥ 
भ्रीराग जसे सदा ई मौरीके रंग । 

पेसहि दीपक रागे ओर ग संग ॥ ६९ ॥ 


अथ भरवादि पच नाम । 

भैरव टाडी कटर चिद कवन राम । 
गौड मुद्यग ॥ ७९ ॥ 
मिहि केदारा कालरा नम्नते सातरैत | 
सारंग आर मत्टाग मिलि के सावत गुणवत ॥ ८० ॥ 
मन्दरुदान कान्धरा मिदि मौ ओर परार | 
महासेकीरण भव सुनो सुरमारिक निस्तार ॥ € १ ॥ 

अथ पटविध महारचैकीरण वर्णनं । 








| अथ श्रीरागादि चतुर्दश सार्कः नाम ॥ 


सुन चतुर्दश नाम अव ने सारकं कदा हि| 
कहौ रंगजेज मिं जिन मिन राग निमि | ७० ॥ 
शरीराग गौरी वरण दीपक भीमपटामि । 
मेय मलार बरण स कर पर्वान विलासि ॥ ७१॥ 
चमे तीनं सांक है संकफण ह तीन । 
| सोओ करं ्रण पि (१ चतुर भरबान ॥ ७२ ॥ 
एनहु-बहुरि सालकके ‰ जुरागीनी-नाम ॥ 
| वरणो विवरण वरण खुभिरि मनटि पद्‌ श्याम ॥ ७३॥ 
| तरिभास रलितके रगै लितहि रंग वसत । 
सोरटं केदार वरण मूषो वृध भाषत ॥ ७४ ॥ 
धनासिरी मूहो हयो भेर वरण कादि । 
काफी ओर मिाबदि रंग कानदरा आदि ॥ ७५॥ 
गौरी गोड बरन कर रेवा गुनरी रंग । 
देश कारुकी रगै बरायी सो अंग ॥ ७६ ॥ 


महासंकीरण अव मन पटति क्वा वषानि । 
द्विषि इक गक नाम धरतो परिचानि ॥ ८२ ॥ 
द्र मुरसा र साग्मा द्र सरसा ए तीन । 

जमल भाव द्टाचन यया चौ र स्वर रीन ॥ ८३ ॥ 


अथ टपुसुरसा । 


१ 


पि शुद्ध सालंकवे, रम्‌ करटावन जोड । 

लघु मंकीण तिरि कट पृराने लोक ॥ ८४ ॥ 
अथं टृषृमृरमा आडानादि पच नाम । 

मिे कान्हरा सोरी नाम अटाना हाई । 

मि गोरी अर गुजर नाम पूवी सोई ॥ ८५ ॥ 


° रा०-२ 





(~ 


क 

टो र धनापिरी पिलत करी नाम्‌ | 

सारंग गौरा संगं गौ रसा! वाम ॥ ८६ ॥ 

मिल रेवा भौ गूजरी नाम सुरेव होड 

गरुसुरसा इकवीस जो भव वरन हना सोई ॥ ८५७ ॥ 
अथ गृसमुरमा भरवादि एकदीम नाम । 

हत भेरवी मिलत दि ठोढी भौर वरारि । 

रामकली मिट दनि ओं शुजरी कहि विचारि । । 

फेर गुनि पालवी पिर गुणक हनः । 

दरयाप बरार संगतं उयामवरारी सोई ॥ ८९ ॥ 

गडमद्ारी हति हं बि संग मौडमदटार । 

मिरे पनासिरी कारा रिप नाम भकार ॥ ९५ ॥ 

नाट कान्दराके पिरे कान्द्ररनाद स्वरूप । 

गौरी ओ षट रागे द्वश्ी बनी अनुप ॥ ११ ॥ 

येडी देशषीके मिल ड । 

मिट येदी ओ परिया गेदीप्ररिया सोई ॥ ९२ ॥ 

£ भपावरी रागनी मिरे रोड गाल | 

सारग विन्द्र मिते दोय परया बरार ॥ ९३ ॥ 
अदीपकी मिलतदी सिरी राग सारंग | 

चति कहिए गारि ज जत्‌ सिरीके ग्रा ॥ ९४॥ 

दाय परिया कन्धरा किय साना साध । 

पटे फरदस्तीकानरा किये सादा गाध ॥ ९५ | 

संग इमन केदारकं देय इमनकेदार । 

पिर केदार कस्थान सो केदारकल्यान विचार । 1५६1 

मार्‌ बरदुर मि सो विदयागरा नाम्‌ । 

सारंग आर्‌ पृरवी मिरे देवगिसैसी नाम ॥ ९७ ॥ 

सारम आं नर्क मिले सारंगनाट ससूप | 

गाव गुनी विचारी कँ सुनते सुधर नर भूप ॥ ९ ॥ 















११ 


संग शुद्ध संकीर्णं जो डोय गिनी ख्यात । 
सोह गुमुरस्ा वद्र सुनो सारसा वात ॥ ९९ ॥ 


अथ वुगुरु मारमा लक्षणं । 





पिकं नाहि साक प्र प्रथय सारस्ता सौय । 
दुतिगरं मित सालक ओं संकीरणक शरेय ॥ १०० ॥ 


अथ छषरुमारमा विषहगा नाम एकं गामिनी कथनं । 





पिनि शरीराय धनाना नाप विष्ट दने । 
घु सारसा वषानिये कहत पुराने नोय ॥ १०१ ॥ 


अथ गरु मारना कल्यानारि चदन नाम वर्णनं । 


मिक धनाशरौ जनश नोप दोन कल्यान | 

विवि ओं उल्यानते भृषारी पचान ॥ १०२ ॥ 
देसक्रार आ पूरी मित मारा दय्‌ । 

वलित बरारी संगे कदि वत भव कोय ॥ १०३ ॥ 
प्रचम ल्येन पाप पचम्रलदित सरूप | 

भनासतिरी भग्र पि मान्दासिरौ सुअनुपु ॥ १०४ ॥ 
मिह परिया घनासिगी स प्रगटत नाम । 

केदार ओं नार्तं केदारानट विश्राम ॥ १०५ ॥ 

मघ मालक मिटे मधुपाधातर अवतार । 

सारट मास्त भया स्वर निधुरप्रकार ॥ १८६ ॥ 
मिलत विल्व मारने ट कामोद्‌ सरूप । 

मिदि धनासिरी पृण्वा पीमषलासि अनुप ॥ १०७ < 
देसकरार अ जनश्री मिहि सीटा्व॑ती दैव । 

विभस संकराभरणते जेनसिरी ट सोय ॥ १०८ ॥ 
महाना ओग बिखाबल भि मुक पान । 

गुराह ह नाप अति गुराड खान ॥ १०९ ॥ 











१२ 

अश लवुमारसा कौोगिकाष्ि जघत्रिशन्नाम १। । 
य॒था च्छ सकीरण मंग दुतिय तीन स्वरग्ग । 

चार पाचके मिटे तवत वह रस्म ॥ १५० ॥ 
अजपाल मिलि प्रिया पर ॥ 
रिषि वररारीतं भयोध 
पिष्ट वसंत दिंडा स्वर पचम प्रमदा गः | 

कौिक मानसर पिर पारङगयर श्वर रा ॥ २१२ ॥ 
स्याम आर कल्यान मिदि व्वानपूरिया रीय | 

रामकली भूषारी पिरि क ह 
मारू ओर पेलि संग परजं परर 
मि असावररी परिया कटेन नाम द साय ॥ ११४ ॥ 
श्याम बरारी होत स्यामव्रगारी संग । 

मि विहागरा पालनी पंथावती गर्ग ॥ ११५ || 
अजपाल भ प्रौलते कटी परिया नारी । 

देवकी गंधारते गोढरि क्यो विचार ॥ ११६ ॥ 
ध्याम रागक पिलतरी रामकडी अर ध्याम । 

णक सपु हे सिंधवी ओर सिपुरा वाम्‌ ॥ ११७ ॥ 
भैरव ओर प्ररारि मिलि होय नाप माच । 

रामकली वगाल मिलि यगटन है भटियाट ॥ १९८ ॥ 
जेत सिरी कट्यानतं होत ननकरयान । | 
भ्याम जर कर्यानते बही नाम परमान ॥ ११९ ॥ 
मिलि कामोद कल्याने है कामोद कल्यान । 

इमन संग कल्यान मिलि साई कहत सुजान ॥ १२० ॥ 
रिभ ओर गधारते अजपाल सुनि लेह । 

संग पिष वेगा प्राग शुद्ध कटि दद्‌ ॥ १२१ ॥ 
छाया होर हमीर अरु शुद्ध नाटक मंग । 

छायानाट कहत सवै कमि कोविदं रष गश ॥ १२२ ॥ 
















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सजि) , ट्‌ क. 





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१३ 


छायानाः दडः मिलत अटिरनाट्‌ है सोय । 
हमीर नाट प सहि सिरि कामोदनाट मो दरेय ॥ १ २३॥ 
पिलि संकराभरण ओ शद्ध परी नम । 
व्कुभ रामिनी चद जा माटकालिकी व्राप ॥ १२४ ॥ 
ठक धवल्ते देत खर सोहनी सरूप । 
टीवी तरिवन मिरे संकोची रस रूप | १२५॥ 
यती ओर वसेत मिि लेत्‌ वरती नाय ¦ 
नट मलारके साथ मिी नदमलार सी वाप ॥ १२६॥ 
अथ गुरु सरसां स्डिलादि चतृिभति नाम 
वर्णनं 1 
लीङाबती कलित बहुरि भैर मरि डोर । 
गौरी गुजरी माटवा संग मन ध्यान अमोल ॥ १२७ ॥ 
गौरी श्याम ओं पूरिया मिलि छंदसिरौ नाम । 
सनतसिसी नट शद्धे कहो सरसुती वाम ॥ १२८ ॥ 
सेवंती दई मिलि कन्दरगौर श्रीगग । 
रेवा पचम वंगा सो प्रज करो सुहाग ॥ १९९ ॥ 
असाबरी भिलि सिधुरा येडी आर मलार । 
असैपाल वंगा ओ लटिति व्थाम परकाग्‌ ॥ १२० ॥ 
संग विलावट गौडसों सो विावली नाम । 
मलार कान्द संकरामरण देशाख लखाम ॥ १३१ ॥ 
हो तीन कामोद सो मि साहि ए तीन । 
कन्दर अरु कामोद पुनि ओ खटराग भवीन ॥ १२२ ॥ 
ठक ेय श्रीराग ओ भरव कान्द संग । 
देशकार गौरी लिति मिलत तरिवन बद रंग ।। १३२ ॥। 
देशकार ओं गुजरी पुनि कल्यान समेन । 
होः अदिरी रागिनी अति रसरंग निकेत ॥ १३४ ॥ 





ष्य 


सादाना केदारा बहुरि इमन संग मीर । 
देवणिरी नर भरी संग अग्र गंभीर ॥ १३५ ॥ 
भरि कान्दरा धनासिरी इमन होई तिहि संग । 
होई नाम वागेसु सुनन क बह स्य॥ १३६ ॥ 
नट हदो दीपकरी मिरे पत्यमा नाम । 
आर सुनो विस्तारतो ज जे ह सुख धाम ॥ १३७॥ 
दोदि धनाश्री सिथवी असावरी मिलि होइ । 
लाहीको मंधार कट गावत दैसव कोई ॥ १ ३८ ॥ 
कहि कन्हरा सुघरहे ओ मछारकं संग । । 
महो नाम उपानि्‌ जासु प्ररम रस रग ॥ १३९॥ 
देस रवी मिले गौरी ओर मलार । 
मारू रागिनी होति ह जानत स संसार ॥ १४० ॥ 
भर्व नम्‌ गुजरी वेगादी गंधार | 
मिरे हत, चौराष्टकौ जानत सवर संसार ॥ १ ४१॥ 
धार वारी यृनरी असनावृरी अस याम्‌ । 
मिले होत पष्टरागको नाम होई रस धाम ॥ १४२॥ 
इत्यादिक वनन क्रिय यथा भरैथ मति राग । 
गात सुन विचय मति कं हरिपद्‌ अनुराग ॥ १ ४२॥ 
क अथ भदविभागकरथं लिख्यत । 
भरवक्रो ऋतु आर दिन कटो सुहरत काह । 
छक्षण जाति समय तया स्थान कटो चित चाह ॥ १४४ | 
पेसेदी पाटकंसको षो भेद मद मान । । 
अर्‌ रोल दीपक कटो मेव शीराग वखान ॥ १४५ ॥ 
निजरसकेत त्वे पिले कोविद्‌ क विचार । 
नहं होय संकीणेता अवर राग सुधार ॥ १४६ ॥ 
नीप भमूता है सुनो अवर सव बधुन विभाग । 
गार सुने विशुद्ध यति हरिपदं अराग ॥ १४७७ ॥ 











१५ 
की जो संसव्या भम दी तामं ए विर्यात | 
अपर नायकी मेद रै ताटि प्॑यकी वात ॥ १४८ ॥ 
अथ मैरवादि षरे रागस्य वंशवर्णनं । 

मैरवादिके वंशक्ो बरनत वौ अव नाम । 
जिटि जिदि स्वरके अंशने परगट छवो रलम ॥ १४५ ॥ 
खजैपुत्र भैरद भयौ पथम राग बड़ भाई । 
माकी पुनि रिषमत उषच्यो सुरपुर आई ॥ १५० ॥ 
पुनि गेधारके अशते भयं हिंटोख सरूप । 
दीपकं मध्यमसु वनहे दुरम परम अनुप ॥ १५१ ॥ 
पंचम सुन ट मेष श्रीराग पिताको नाम्‌ । 
वैर आटि निषादो वां मदत सहे वाम | १५२ ॥ 
सारिगमपथ क गभेते जन्येये प्ट रग । 
तीय प्रमूला ई सुनो अव सव वधन विभाग ॥ १५२ ॥ 

अथ मैरवराम ममाजमदितवर्णनं । 
मैरवकी दै मध्यमा ओं भैरी उररारी । 
मधुमाधवी सिधवी बहुरि व॑गाटी पट नारी ॥ १५५ ॥ 
षट पट्‌ सखि इक एककी तिनमे वर ईक एक 1 
प्ट जथ पति नामजत वरनौ सहित वियेव, ॥ १५५ ॥ 
अष्टि सिति सो हरि रेव ओं मियाट । 
रंभे टी पट सी जूध परम्‌ रसाल ॥ १५६ ॥ 
प्ट ष्ट सुत भतिरागिनी वर क इक तिन मादि । 
ते पट श्राता बर्‌ बरनि कटौ नामजे आ ॥ १५७ ॥ 
धौल व्याम करिक अजपाल चुद्ध सो राग । 
कन्दर नाट भैरव सुवन वरन सटित विभाग ॥ १५८ ॥ 

अथ माल्कोश राग ममाजसटित वर्णनं । 


येढी मार ष॑मावती ककम गुणकली गौरि । 
मारकौदयकी नारि एक वसत रागकी गारी ॥ १५५ ॥ 





1 न २०२१६ १,८.८८ 
क ॥ 
१६ १५ 


ध्याम पूरवी मवरं ीन्टापती राम | 
गौरसारंग विदारी ओ पुरिया मौ बाम ॥ ५६५ ॥ 
माया द्युद्ध पार केदार मागण नान | 
अहीर सरिते पट नाद जुन छन नामनि प्दिचान ॥ १६१ ॥ 
गंधार नाम वर मखा ह सारंग सखी वनाम | 
मालका सह पिदित द एकरद रस धाम्‌ ॥ १६२॥ 
अथ िदलरागस्तमाजसद्िवर्णनं । 
गमकल्टी देशात पटं जरी नटित सरू¶ । 
बिद्यगरा वरिरावरससिति षर रिदोकी सूप ॥ १६३ ॥ 
त्रिवन पुर्या पूवी जी उदीपक्री नारी । 
देवगिरौ चतीक्टर पद नुव विचारी॥ ४६४ ॥ 
मरन यान मन्वा खद्ान। 
श 1 साना उग्गो ऊन्यान । 
है दमन कल्यान पट दिंटोट पुत्र परिचान ॥ १६५ ॥ 
सखा खच्दित पंचम सदत हेहि कटं उपान । 
सखि वसंनीयुत सदा एकव ए जान ॥ १६६ ॥ 
अथ दीपक गग नमानमदहितवर्णनं । 
देशी आर करापोद नटे काफी नहा पिचागी । 





शषौ रोरी परिया असावी शयाम करी । $ 
पूरा रोरी तथी स्मर पहेली नागी ॥ १७२ ॥ 

सामैत नाट भान ओ छाया पनि सावत । 

छम सिथरा मषक ए पट मुत भावन ॥ १७३:॥ 

गीर सखा स्वी यहूरी नरमारीमो नारी । 

मेष सचति एकविंशे रमिक कल्यान विचारी ॥ १७४ ॥ 


अथ श्रीराग ममाजसटितवर्णनं । 





मरन्यसिरी करनाटि पूनि पारवि कदी विचारी । 

वसत धनाश्री आसावरी श्री रागक नारी ॥ १४५ ॥ 
प्रन विप्रा सरसुती नाट मलारी बाम । 

जसवैती ओर एरदुम्ती षट नाम ॥ १७६ ॥ 
तिटककामोद अर गौड ट कामोदरनाटं जरु नाम । 
वागेष्वरी अ पूरिया दद्धर ओ स्याम गाम ॥ १७७ ॥ 
पचम संकोच सखा सखी सिन ‡कवीस । 

राजत ई श्रीराण नित मावत देत असीस ॥ १७८ ॥ 








केदागा ओं कन्दरा पट दीपक्रकी नारी ॥ १६५ द 
पक्क ६७ ॥ ~ 
न ५९६ दिनि कतु चिगृण जाति 
मलम्द्ान कान्टरा अष्टि अरौ नाम । व त | ॥ 
५. ट्‌ ट टिक््यन्‌ 


चौराष्टकी आसावरी पररिया धनाश्री बाम ॥ १६८ ॥ 

एकः दमन केदार आ च कल्यान पान । बदरि भ्न कटि उढत दौ मरति परनि राग समान । 

केदार चत कापोद वहि ध्याम दृमीरटि जान ॥ १६५ ॥ निस्ासर भनि जभा सव करत गकर इराज ॥ १७५ ॥ 
स सदिति सव एकः करि लिखि दिखराया वष्ट । 


‡ शवटराग सदिति मखा दीपक राग समाज । 
मीमपलासी सवी जन पकरविश्न मुखे कान ॥ १७५ ॥ एयर साने चतुर जन रपत ल ल नादि ॥ १८० ॥ 


कर साख व ध = ॥ निज समाज जुतराग स्र नित निन आदा जाम । 

8 भूपालो बहारी | 1 

द सकारे जत वामर षट मेघ देत अकवारी ॥ १७१ ॥ ४ = स श भि ५ ८ 
4 भज राग* 





| ओ ॥ 


आदि राततं भातत 
आदि अंत माधि रन 


सुगमरागमादा संध समाः 


^ 


[88 


-5/) 


१८ 


दके इक राज करादि । 
दिन वदि समान कटाहि ॥ १८२ ॥ 


इतिभीमन्मदाराजाधिरान मानिहनीके 


र 


हमसे श्रीकल्याणञ्चवी विराव 
॥ संयत्‌ १८६१ ॥ 






















सनन ~~~ 























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स्वर | भरं | श्विम गंधार मध्यम | पंचम | धैव 
॥ |“ वी. 
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भद्‌ | + | "च | १/५ | › 
| | 
॥ ~~~ 
अथ | करीना | वीना | योगद | कोमला | अंगा | गुता 
भित्र | आयता | नवोन [मनौ कोकिला | ततया हा | अरमगौ 
| 4 & 
| | 
मिन | मृदु | परवीन शुक्त | सगा | पक्षि | 
| ॥ 
नाम | मध्या मेगला | तरिमगा | 
कथन | गुनी ॥ | 
जानतटे | | 
अथ सप्तस्वरचक्र । 
(=-= | ि 3 
विम) नधत | मध्यम | पंचम | येवट  निषाद्‌ 
| | 








धु वे तथा तेच्री काप बीन सारी तमूरा । 
सितार व्यादि चाजन ज ते तदा मगट जानिप ॥ 


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अथ त्राममेदुचक्रं । 






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अथ देशदोष चकर 


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तनः | एल" "| नाल- काग वदन | भेह्[कपाल- व्यंग. अर्थन. स्वग. 
दीने | हीन | दन स्वर वक्र वंक [स्वः स्वः नान भद्‌ 
† | ` |... [५ न्व 
. ६ ५५ १ 
| | 
[क ् | „ अतिमिष्र अनिमयर = 
लिकः स्व्‌ | बोषनष्य उत्व बृ स्वरवते 
/ अन्यु. 
अथ पर्ठनाचं अथ श्रोताचक्रं। अथ गुनीचक्रं । 
थ पूछनाचकं । यु 







म | भनदी दभा य | कोमल 
। | | 
विनोद्नी | मलापि | शीघ्रा 


सनोदिनी | हापा 


गांधारि; 











कानिनौ 





क ॥ 1 
| निमी | विदण्नि | जंक 
अगगातिनी | नमटी 


= न | । 
व्व॑नी निपुण समान | गुणदरीन | 


न - | 
समोगुन। | रजोगुनी | तमोगुनी 
| 


यादन लसन 
मंभक्तनद 








----~_) 





स्कर तारवदि मे 





















---- ~ टट य क 23 
< ४ 


9 ~ 


अथ रागगुनचर्क । 











911) ५ = ८: 
आसानो मर | माटकोश | द्िडोल | दीपक भेष श्री 














कत्‌ मन बर्तन | न्‌ पाव्स | सद्‌ 
दधिनि | रवि सोभ | # | चु गुरः | गक 
मूर्ति | शिव | | विष्ण । भपरी छ | ख 
ह लक्षन | धनद्‌ | धम्‌ 
| 


1 
सनद्‌ | क्षानद्‌ | खख | पेमद्‌ 


जानि | संकीर्णं | नंदीगं | संकीर्णं | सारक | सारकं । सालक 





सन्य । छगधी तन | एक प्रक | प्र राते|संभ्वासमय | सथ रात | एक पर्‌ 
| से |दिनष्डे| दिन ॥ | दिनिष्टै 
स्याने केनत | ब्लोक | वकु | तपोलोक | इृदटोक | चद्ररोकः 
~ ह । 


अथ भैरवरागचक्रं । 
































[गन म त द् - = 
अश्वाय | मध्यमा | मदौ | वराही मधुमाधवी | सिजेवी | बंगाली 
रागनी | गाणिनी | हागिनी | रागिनी दानिन निन 
समव | द्वै प्ल | एक्‌ पदर |दो प | देर प । डे पहर | एक पहर 
रात न दिन दिन निकट] दिमचदे | राते | रानि दे 
छगरी रान अष्ट सख्ी| महि सतती | सूट्रो सखी रेवा सती । मटियाला स्मेठी सन्तो 
सला | 
दै | कः ह्र | ह श | दो षर [उभर दिन | चार घर | दौ पहल 
८५ दिर | दिनिचदे| चे | रात र | रात बीते 


























त्थोन 

` य क~ 1 सहनी सजो | धोलपुत् | श्वाम पुत्र, कौशिक | अनेषाल शृ पत्र कन्नार 

~ पुम | पूत शच । 
= शः ०५ सन चारक दोष | दिनि सद्‌ा] । चतम्‌ | 
ग = २३ दिन बडे; दिन चदे | स्य दल | 
र = स 

मनमस्तन्न {1 |. 1 | 

~ कविय _ 

आनंद्युत २६ 























गुणकतनति २५